प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के श्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत प्रमुखत: तीन हैं –
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- पुरातात्विक स्रोत
- साहित्यिक स्रोत
- विदेशी यात्रियों के विवरण
पुरातात्विक श्रोत
♦ पुरातात्विक श्रोतों में अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियाँ, चित्रकला,आदि आते हैं।
♦ पुरातात्विक श्रोतों के अंतर्गत सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्रोत अभिलेख हैं।प्राचीन भारत के अधिकांश अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों तथा प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण हैं।
अभिलेख
♦ भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के हैं जो की लगभग 300 ई.पू. के हैं।
♦ ईरानी सम्राट से प्रभावित होकर अशोक ने अपने राज्य में अभिलेख जारी करवाए थे।
♦ अशोक के अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं केवल कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं जो की पश्चिमोत्तर भारत में पाए गए।
♦ खरोष्ठी लिपि फारसी लिपि की भांति दाई ओर से बाई ओर को लिखी जाती हैं।
♦ मास्की, गुज्जरा, निटटूर, और उडेगोल्म से प्राप्त अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख हैं।
♦ अशोक के इन अभिलेखों से अशोक के धर्म और राजत्व के आदर्श के बारे में जानकारी मिलती हैं।
सबसे अधिक अभिलेख मैसूर के संग्राहलय में संग्रहित हैं।
♦ मौर्य,मौर्योत्तर काल और गुप्त काल के अधिकांश अभिलेख कार्पस इन्सक्रिप्शनम इंडिकेरम नामक ग्रन्थ में संकलित हैं।
♦ गुप्तकाल से पूर्व के अभिलेखों की भाषा प्राकृत थी जबकि गुप्तोत्तर काल के अभिलेख संस्कृत भाषा में हैं।
सिक्के
♦ भारत के प्राचीन सिक्के पंचमार्क या आहत सिक्के कहलाते थे। साहित्य में इन्हें काषार्पण कहा गया हैं।
♦पुराने सिक्के तांबे, चांदी, सोने और सीसे के बनते थे।
♦आरंभिक काल के सिक्कों में कुछ प्रतीक मिलते थे पर बाद के सिक्कों में राजाओं और देवताओं के नाम तथा तिथियाँ उल्लिखित मिलती हैं सोने के सिक्के सर्वप्रथम कुषाण राजाओं ने जारी किये।
♦ सर्वाधिक सोने के सिक्के गुप्त वंश के राजाओं ने जारी किये।
♦ सातवाहन शासकों ने सीसे(Lead) के सिक्के जारी किये।
♦ समुद्रगुप्त को एक सिक्के पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया हैं।
♦ गुप्त काल में सोने के सिक्कों को दीनार एवं चांदी के सिक्कों को रूपक कहते थे।
चित्रकला
♦ चित्रकला से हमें उस समय के जीवन और समाज के बारे में जानकारी मिलती हैं।
♦ अजंता के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती हैं। चित्रकला में माता और शिशु तथा मरणासन्न राजकुमारी जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक उन्नति का पूर्ण आभास होता है।
अवशेष
♦ अवशेषों से प्राप्त मोहरों से प्राचीन भारत का इतिहास लिखने में बहुत सहायता मिलती हैं।
♦ हडप्पा , मोहनजोदड़ों से प्राप्त मोहरों से उनके धार्मिक अवस्थाओं का ज्ञान होता हैं
♦ बसाड से प्राप्त मिटटी की मोहरों से व्यापारिक श्रेणियों का ज्ञान होता हैं।
साहित्यिक श्रोत
साहित्यिक श्रोत दो प्रकार के होते हैं –
- धार्मिक साहित्य
- लौकिक साहित्य या धर्मेत्तर साहित्य
♦ धार्मिक साहित्य में ब्राह्मण तथा ब्रहमनेत्तर ग्रन्थ आते हैं।
♦ ब्राह्मण ग्रंथो में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण तथा स्मृति ग्रन्थ आते हैं।
♦ ब्रह्मनेत्तर ग्रंथो में बौध, जैन साहित्यों से सम्बंधित रचनाओं का उल्लेख किया जा सकता हैं।
♦ लौकिक साहित्य में ऐतिहासिक ग्रंथो, जीवनियों, कल्पना प्रधान साहित्य का वर्णन किया जाता हैं।
ब्राह्मण साहित्य :
♦ वेद –ब्राह्मण साहित्य में सबसे प्राचीन ऋग्वेद है।वेदों के द्वारा प्राचीन आर्यों के धार्मिक, सामाजि, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन की जानकारी मिलती हैं।
♦ वेदों की संख्या 4 हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्वेद
♦ वेदों को अच्छी तरह से समझने के लिए 6 वेदांगो की रचना हुई – शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरुक्त तथा छंद।
ऋग्वेद :
♦ इसका रचना काल 1500 ई0 पू0 से 1000 ई0 पू0 माना जाता हैं।
♦ ऋग्वेद में कुल 10 मंडल एवम 1028 सूक्त हैं।
♦ ऋग्वेद के मंत्रो को यज्ञों के अवसर पर देवताओं की स्तुति हेतु होत्र ऋषियों द्वारा उच्चारित किया जाता हैं।
♦ ऋग्वेद में पहला एवं दसवां मंडल सबसे अंत में जोड़ा गया हैं।
♦ऋग्वेद के दो ब्राहमण ग्रन्थ हैं – ऐतरेय एवं कौषितिकी अथवा शांखायन।
यजुर्वेद :
♦ यजु का अर्थ हैं ‘यज्ञ’ . इसमें यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानों का संकलन मिलता हैं।
♦ यजुर्वेद गद्यऔर पद्य दोनों में लिखे गए हैं।
सामवेद :
♦ ‘साम’ का शाब्दिक अर्थ हैं -गान। इसमें यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मंत्रो का संग्रह हैं।
♦ सामवेद को भारतीय संगीत का मूलाधार भी कहा जाता हैं।
♦ सामवेद में मुख्यतः सूर्य की स्तुति के मन्त्र हैं।
♦ सामवेद के मंत्रो को गाने वाला उदगाता कहलाता हैं।
अथर्वेद :
♦ अथर्वेद को अथर्वा ऋषि द्वारा रचित माना जाता हैं।
♦ इस वेद की रचना सबसे अंत में हुई हैं। इसमें 731 सूक्त ,20 अध्याय तथा 6000 मन्त्र हैं।
♦ अथर्वेद में आर्य और अनार्यों की विचार-धाराओं का समन्वय मिलता हैं।
♦ अथर्वेद कन्याओं के जन्म की निंदा करता हैं।
♦ अथर्वेद में सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता हैं।
♦ अथर्वेद का प्रतिनिधि सूक्त -पृथ्वी सूक्त को माना जाता हैं।
♦ पृथ्वी सूक्त में मानव जीवन के सभी पक्षों – गृह निर्माण, कृषि की उन्नति, व्यापारिक मार्गो की खोज, रोग निवारण, समन्वय, विवाह प्रणय गीतों, वनस्पतियों औषिधयों, शाप, वशीकरण, राज भक्ति, राजा का चुनाव, जादू टोने, टोटके का वर्णन भी मिलता हैं।
♦ अथर्वेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा माना गया हैं।
♦ अथर्वेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियों कहा गया हैं।
पुराण :
♦ पुराणों के रचियता ऋषि लोमहर्ष तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा को माना जाता हैं।
♦ पुराणों से हमें भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का क्रमबद्ध विवरण मिलता हैं।
♦ पुराणों की संख्या 18 हैं लेकिन केवल 5 पुराणों में राजाओं की वंशावली मिलती हैं – मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राहमण एवं भागवत पुराणों में मत्स्य पुराण सबसे अधिक पुराना व प्रमाणिक हैं।
♦ पुराण संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं जिनका वाचन पुजारी द्वारा किया जाता हैं इनको सुनाने की अनुमति स्त्रियों और शुद्र दोनों को हैं जबकि वेदों को सुनने की अनुमति स्त्रियों और शुद्रो को नहीं हैं।
♦ शतपथ ब्राहमण में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी माना गया हैं।
♦ स्त्रियों की सबसे अधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी संहिता में दर्श्यी गई हैं जिसमें स्त्री को जुआ और शराब की भांति पुरुष का तीसरा मुख्य दोष माना गया हैं।
♦ सबसे प्राचीन स्मृति मनुस्मृति को माना गया है जिसका रचना काल शुंग काल हैं।
♦ नारद स्मृति से गुप्त युग की जानकारी मिलती है।
विदेशी यात्रियों का विवरण
♦ भारत पर प्राचीन समय से ही विदेशी आक्रमण होते रहे हैं। इन विदेशी आक्रमणों के कारण भारत की राजनीति और यहाँ के इतिहास में समय-समय पर काफ़ी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
♦ भले ही भारत पर यूनानियों का हमला रहा हो या मुसलमानों का या फिर अन्य जातियों का, अनेकों विदेशी यात्रियों ने यहाँ की धरती पर अपना पाँव रखा है। इनमें से अधिकांश यात्री आक्रमणकारी सेना के साथ भारत में आये। इन विदेशी यात्रियों के विवरण से भारतीय इतिहास की अमूल्य जानकारी हमें प्राप्त होती है।
विभाजन
विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भारतीय इतिहास की जो जानकारी मिलती है, उसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
- यूनानी-रोमन लेखक
- चीनी लेखक
- अरबी लेखक
यूनानी यात्री
♦ टेसियस और हेरोडोटस यूनान और रोम के प्राचीन लेखकों में से हैं।
♦ टेसियस ईरानी राजवैद्य था, उसने भारत के विषय में समस्त जानकारी ईरानी अधिकारियों से प्राप्त की थी।
♦ हेरोडोटस, जिसे इतिहास का पिता कहा जाता है, ने 5वीं शताब्दी ई. पू. में ‘हिस्टोरिका‘ नामक पुस्तक की रचना की थी, जिसमें भारत और फ़ारस के सम्बन्धों का वर्णन किया गया है।
♦ ‘नियार्कस’, ‘आनेसिक्रिटस’ और ‘अरिस्टोवुलास‘ ये सभी लेखक सिकन्दर के समकालीन थे। इन लेखकों द्वारा जो भी विवरण तत्कालीन भारतीय इतिहास से जुड़ा है, वह अपने में प्रमाणिक है।
♦ सिकन्दर के बाद के लेखकों में महत्त्वपूर्ण था, मेगस्थनीज, जो यूनानी राजा सेल्यूकस का राजदूत था। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में क़रीब 14 वर्षों तक रहा। उसने ‘इण्डिका‘ नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें तत्कालीन मौर्य वंशीय समाज एवं संस्कृति का विवरण दिया गया था।
♦ ‘डाइमेकस‘, सीरियन नरेश ‘अन्तियोकस’ का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में काफ़ी दिनों तक रहा। ‘डायनिसियस‘ मिस्र नरेश ‘टॉल्मी फिलाडेल्फस‘ के राजदूत के रूप में काफ़ी दिनों तक सम्राट अशोक के राज दरबार में रहा था।
चीनी यात्री
♦ चीनी लेखकों के विवरण से भी भारतीय इतिहास पर प्रचुर प्रभाव पड़ता है। सभी चीनी लेखक यात्री बौद्ध मतानुयायी थे, और वे इस धर्म के विषय में कुछ जानकारी के लिए ही भारत आये थे।
♦ चीनी बौद्ध यात्रियों में से प्रमुख थे- फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग, मल्वानलिन, चाऊ-जू-कुआ आदि।
फाह्यान
♦ फाह्यान का जन्म चीन के ‘वु-वंग’ नामक स्थान पर हुआ था। यह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने लगभग 399 ई. में भारत यात्रा प्रारम्भ की।
♦ फाह्यान की भारत यात्रा का उदेश्य बौद्ध हस्तलिपियों एवं बौद्ध स्मृतियों को खोजना था। इसीलिए फ़ाह्यान ने उन्ही स्थानों के भ्रमण को महत्त्व दिया, जो बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थे।
ह्वेनसांग
♦ ह्वेनसांग कन्नौज के राजा हर्षवर्धन (606-47ई.) के शासनकाल में भारत आया था।
♦ इसने क़रीब 10 वर्षों तक भारत में भ्रमण किया। उसने 6 वर्षों तक नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया।
♦ उसकी भारत यात्रा का वृतान्त ‘सी-यू-की’ नामक ग्रंथ से जाना जाता है, जिसमें लगभग 138 देशों के यात्रा विवरण का ज़िक्र मिलता है।
♦ चीनी यात्रियों में सर्वाधिक महत्व ह्वेनसांग का ही है। उसे ‘प्रिंस ऑफ़ पिलग्रिम्स’ अर्थात् ‘यात्रियों का राजकुमार’ कहा जाता है।
इत्सिंग
♦ इत्सिंग 613-715 ई. के समय भारत आया था। उसने नालन्दा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा उस समय के भारत पर प्रकाश डाला है।
♦ ‘मत्वालिन‘ ने हर्ष के पूर्व अभियान एवं ‘चाऊ-जू-कुआ‘ ने चोल कालीन इतिहास पर प्रकाश डाला है।
अरबी यात्री
♦ पूर्व मध्यकालीन भारत के समाज और संस्कृति के विषयों में हमें सर्वप्रथम अरब व्यापारियों एवं लेखकों से विवरण प्राप्त होता है।
♦ इन व्यापारियों और लेखकों में मुख्य हैं- अलबेरूनी,सुलेमान, फ़रिश्ता और अलमसूदी।
फ़रिश्ता
♦ फ़रिश्ता एक प्रसिद्ध इतिहासकार था, जिसने फ़ारसी में इतिहास लिखा है।
♦ वह युवावस्था में अपने पिता के साथ अहमदाबाद आया और वहाँ 1589 ई. तक रहा।
♦ इसके बाद वह बीजापुर चला गया, जहाँ उसने सुल्तान इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय का संरक्षण प्राप्त किया था।
अलबेरूनी
♦ अलबेरूनी जो ‘अबूरिहान‘ नाम से भी जाना जाता था, 973 ई. में ख्वारिज्म (खीवा) में पैदा हुआ था।
♦ 1017 ई. में ख्वारिज्म को महमूद ग़ज़नवी द्वारा जीते जाने पर अलबेरूनी को उसने राज्य ज्योतिषी के पद पर नियुक्त किया।
बाद में महमूद के साथ अलबेरूनी भारत आया।
♦ इसने अपनी पुस्तक ‘तहकीक-ए-हिन्द’ अर्थात ‘किताबुल हिंद‘ में राजपूत कालीन समाज, धर्म, रीतिरिवाज आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला है।
सुलेमान
♦ 9 वी. शताब्दी में भारत आने वाले अरबी यात्री सुलेमान प्रतिहार एवं पाल शासकों के तत्कालीन आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक दशा का वर्णन करता है।
अलमसूदी
♦ 915-16 ई. में भारत की यात्रा करने वाला बगदाद का यह यात्री अलमसूदी राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों के विषय में जानकारी देता हैं।
तबरी
♦ ‘तबरी’ अथवा ‘टबरी‘ (अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न, जरी उत तबरी) एक महान अरब इतिहासकार और इस्लाम धर्म शास्त्री था।
उपर्युक्त विदेशी यात्रियों के विवरण के अतिरिक्त कुछ फ़ारसी लेखकों के विवरण भी प्राप्त होते हैं, जिनसे भारतीय इतिहास के अध्ययन में काफ़ी सहायता मिलती है। इसमें महत्त्वपूर्ण हैं-‘फ़िरदौसी‘ (940-1020ई.) कृत ‘शाहनामा‘। ‘रशदुद्वीन‘ कृत ‘जमीएत-अल-तवारीख़‘, ‘अली अहमद‘ कृत ‘चाचनामा’, ‘मिनहाज-उल-सिराज‘ कृत ‘तबकात-ए-नासिरी‘, ‘जियाउद्दीन बरनी‘ कृत ‘तारीख़-ए-फ़िरोजशाही‘ एवं ‘अबुल फ़ज़ल‘ कृत ‘अकबरनामा‘ आदि।
अन्य विदेशी यात्री
कुछ अन्य विदेशी यात्रियों का विवरण इस प्रकार से है-
इब्न बतूता
♦ इब्न बतूता एक विद्वान अफ़्रीकी यात्री था, जिसका जन्म 24 फ़रवरी 1304 ई. को उत्तर अफ्रीका के मोरक्को प्रदेश के प्रसिद्ध नगर ‘तांजियर’ में हुआ था।
♦ इब्न बतूता 1333 ई. में सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ के राज्यकाल में भारत आया। सुल्तान ने इसका स्वागत किया और उसे दिल्ली का प्रधान क़ाज़ी नियुक्त कर दिया।
बर्नियर
♦ बर्नियर का पूरा नाम ‘फ़्रेंसिस बर्नियर’ था। ये एक फ़्राँसीसी विद्वान डॉक्टर थे, जो सत्रहवीं सदी में फ्राँस से भारत आए थे।
♦ बर्नियर के आगमन के समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे।
♦ बर्नियर ने मुग़ल राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएँ बर्नियर ने स्वयं देखी थीं।
पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य
♦ पुरातात्विक स्त्रोतों के अंतर्गत उत्खनन (खुदाई) में प्राप्त वस्तुएं आती हैं . इनमें अभिलेख , मुद्राएँ और प्राचीन खँडहर इत्यादि महत्वपूर्ण हैं।
♦ इसके अतिरिक्त जीवाश्मों के अध्ययन से किसी काल के वासियों के बारे में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त होती है।